👓 दादा जी का ऐनक – बचपन की प्यारी कविता | Bachpan Ki Kavita in Hindi
बचपन की यादों से जुड़ी भावुक कविता “दादा जी का ऐनक” पढ़ें। दादा जी, बचपन और रिश्तों की मिठास से भरी ये कविता आपके दिल को छू जाएगी। 👓 दादा जी का ऐनक | बचपन की यादों से जुड़ी एक प्यारी कविता अरे राजू, अपने दादा जी का ऐनक किधर गया? जो आंखों पे कम, पर ज़िंदगी को साफ़ दिखाने के काम आता था। धूप में उसका कांच सुनहरी चमक देता था, और शाम को जब वो उतारते — तो जैसे पूरे दिन की थकान भी उतार देते थे। उस ऐनक से कभी रामायण पढ़ते, तो कभी बिल भरने की पर्ची ढूंढते। और कई बार उसी ऐनक के पीछे से हमारे झूठ भी पकड़ लेते थे! सिरहाने रखी ऐनक हर सुबह सबसे पहले उठती थी, क्योंकि दादा की आंखें नहीं, वो ऐनक ही तो सपनों की रोशनी थी। अब ना वो ऐनक है, ना वो धुंधली मुस्कान के पार देखती आंखें, बस रह गया है एक पुराना ऐनक का डिब्बा, जिसमें पूरे परिवार की समझदारी बंद है। नोट अगर पसंद आए तो comment लिखें और दोस्तों को शेयर करें