लंगड़ी वफ़ा" कविता पढ़े BEST Bachpan-Ki-Kavita
अरे राजू, अपनी लंगड़ी कुतिया किधर गई,
वो जो मोहल्ले भर की पहरेदार थी,
ना रसीद, ना पट्टा — पर सबसे वफादार थी।
याद है तू बिस्किट लाकर उसके लिए छुपा देता था,
और वो तेरी आहट सुन के दुम हिलाती थी,
भले ही एक टांग से लंगड़ाती थी,
पर मोहल्ले की हर गली उसके नाम से डरती थी।
कभी वो भौंकती नहीं थी बिना वजह,
और जब भौंकती — तो समझ जाना
गली में कोई नया था,
या फिर कोई अपने जैसा नहीं था।
अरे राजू,
वो जो तेरे पीछे स्कूल तक आती थी,
और तुझे छोड़ने मंदिर के मोड़ तक जाती थी —
अब ना दिखती है, ना सुनाई देती है।
क्या किसी बिल्डर की सड़क में दब गई?
या किसी सोसाइटी के "रूल्स" में खो गई?
तेरी कुतिया तो बेघर थी, पर दिलवाली थी राजू।
अगर कभी फिर दिखे वो लंगड़ी वफ़ा,
तो सिर झुकाकर कह देना,
"तेरा पुराना दोस्त
अब भी याद करता है तुझे।"
नोट:अगर पसंद आए तो comment लिखें और दोस्तों को शेयर करें
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें