"पढ़िए वकील साहब की मजेदार शायरी कविता एक नए अंदाज में" vakil Saheb ki kavita पढ़ें हिंदी में
वकील साहब
वकील मेरा नाम है,
वकालत मेरा काम है।
झगड़ते हैं दो लोग गली-गली,
मैं कहता हूँ – "चलिए, कोर्ट मेरी गली!"
सवालों का जाल बिछाऊँ,
गवाह को भी उलझाऊँ।
कभी केस जीता फीस से भारी,
कभी केस हारा, फिर भी जेब हमारी। 😄
कानून की गलियों में चलती चालाकी,
कभी तर्क-कभी बहस-कभी थोड़ी नाटकबाज़ी।
सच-झूठ सब कागज़ पर आ जाता है,
फैसला देर से, पर मेरी सुनवाई काम आ जाता है।
झूठ को सच बना दूँ,
सच को भी थोड़ा घुमा दूँ,
न्यायाधीश भी कह दें –
"वाह, ये तर्क तो बड़ा काम का है!"
कभी बहस में गरजता हूँ,
कभी नज़र से बरसता हूँ,
गवाह पूछे – "अब क्या कहूँ?"
मैं बोल दूँ – "चुप रहना ही तेरे हक़ का नाम है।"
काग़ज़ों का बोझ उठाता हूँ,
फीस का मज़ा भी पाता हूँ,
हार जाऊँ तो कहता हूँ –
"जज साहब, अपील अभी बाक़ी काम है!" 😄
हमने तो सीखा है,
कानून की किताबों से खेलना,
जज भी कहे – ये वकील,
तर्कों में माहिर है झेलना।"
💼
कभी बहस में ग़ुस्सा,
कभी हंसी का अंदाज़,
मुवक्किल कहे – "जीता न सही,
पर मज़ा आ गया आज!" 😂
वकील मेरा नाम है,
वकालत मेरा काम है।

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