Bachpan-Ki-Kavita बुंदेलखंड महोबा : आज के आल्हा ऊदल युद्ध कविता वीर रस vs गूगल जमाने की : पार्ट 1

बुंदेलखन में जब थे आल्हा ऊदल। BUNDELKHAND KE ALHA UDAL

➤ बुंदेलखंड के वीर, आल्हा-ऊदल का नाम। / पराक्रम का अंबर, गूँजे हर वीर का गान।

➤ ढोल-नगाड़े गूँजे, रणभूमि में जोश भारी। / तलवार की आवाज़ बोले, बहादुरी निहारी।

➤ ना फेसबुक, ना इंस्टा, ना थी कोई चाल। / संदेश घोड़े पर आता, वीरों का था मलाल।

➤ ना जीपीएस दिखाता, ना नक्शा का लोह। / तारे-चाँद रहे साथी, रास्ता बताया जोह।

➤ ना चैनल, ना ट्वीट, बस ढोल की थाप। / आल्हा-ऊदल की गाथा, गूँजे हर गाँव-नाप।

➤ सेल्फी-कैमरा न था, न वीडियो का रोल। / वीर छाप छोड़ गए, मैदान में बने बोल।

➤ ना ब्लॉग, न वेबसाइट, न कोई डिजिटल ध्वनि। / पर गाथा रही अमर, युगों तक उसी रवानी।

➤ सोचो अगर गूगल होता, सर्च पर क्या मिलता— / "युद्ध जीतने के राज", हर सैनिक पढ़ता खिलता।

➤ इंस्टा पर ट्रेंड बनता — "आल्हा का पराक्रम"। / ऊदल भी बनाये रील, तलवारों का हर कर्म।

➤ ट्विटर पे आए घोष — "युद्ध हुआ तैयार"। / दुश्मन टैग कर डरें, सुनो वीरों का वार।

➤ पर उस समय दिल बड़ा, साहस था ही जीत। / ना चाहिए था ट्वीट, न काउँट की कोई रीत।

➤ आज ज्ञान के भंडार लाख, मशीनें कर लें भेद। / पर वीरता का बलिदान, न मशीन दे सके वेद।

➤ धरती माँ ने दिए जो, निकले वीर महान। / गूगल सिखा दे कुछ, पर न दे वे बलिदान।

➤ युग बदले साज-सज्जा, साधन सब बदलें चाल। / पर आल्हा-ऊदल की कथा, रहे अमर हर हाल।

टिप्पणियाँ

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