बचपन की यादें और मोबाइल पर शायरी | Hindi Shayari
पढ़ें बचपन की गलियों, खेल और मोबाइल पर मजेदार और दर्दभरी शायरी। हिंदी Shayari जो यादें और हँसी-खुशी दोनों दिल में जगाए।
"नया ज़माना, नया धंधा"
बचपन की गलियों में, हँसी ठिठोली खेल,
अब तो मोबाइल ने, बाँध दिए सब जेल।
कंचे, गिल्ली, पतंग की, भूली सब पहचान,
स्क्रीन की दुनिया में, खोया बचपन-गान।
दादी-नानी सो गईं, कहानी भी सोई,
AI की आवाज़ में, वही मिठास ना होई।
किताबों की महक अब, रह गई बस याद,
PDF ने छीन ली, कागज़ की खुशबू-साद।
सपनों की परछाईं, सोई मन के गाँव,
जगाना होगा फिर से, सच्चे रिश्ते भाव।
स्मार्टफोन हो साथी, पर जीवन का मूल,
माटी की महक से ही, रहे हमारा मूल।
मोहल्ले की चौपालें, अब ग्रुप चैट में बदलीं,
आवाज़ें इंसानों की, अब बस नोटिफ़िकेशन निकलीं।
बरसात में भीगना था, कागज़ की नाव बनानी,
अब बारिश की तस्वीरें, बस insta पर लगानी।
राखी के धागों में, जो अपनापन मिलता था,
अब online order से, वो जज़्बा भी सिलता था।
ज़िंदगी की असली किताब, अब खुलती ही कहाँ है,
Password के ताले में, हर रिश्ता कैद यहाँ है।
बचपन की गलियों का वो मेला कहाँ,
कंचे, पतंगें और खेलों का झमेला कहाँ।
मोबाइल ने छीन ली हँसी और कहानी,
अब बचपन की यादें ही रह गईं निशानी।
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