“पुराने कंचों की यादें और बचपन का खेल फिर से जी लें” । Bachpan ki best kavita
"गाड़े हुए कंचे" Bachpan ki best kavita
अरे राजू,
अपने कंचे किधर गए?
जो मैंने ज़मीन में गाड़ दिए थे —
किसी खजाने की तरह,
किसी सपने की तरह।
वो नीले, पीले, हरे कंचे
जो धूप में चमकते थे
जैसे उनमें चांद-तारे कैद हों,
और हमारी आँखों में जीत की चमक।
हर शाम मोहल्ले के नुक्कड़ पर
हम अपनी उंगलियों में
शूटर फँसाकर
दुनिया जीतने निकलते थे।
वो गोल दायरे,
वो "तू हटा! अब मेरी बारी!" वाली लड़ाइयाँ,
और एक कंचे के लिए
जान लगा देना —
क्या गज़ब के दिन थे राजू!
अब तो ना वो ज़मीन बची,
ना वो खेल,
ना वो मासूम जिद —
बस दिल के किसी कोने में
कभी-कभी एक कंचा बज उठता है...
टीन-टन-टन...
और हम फिर बच्चे बन जाते हैं।
चल राजू,
कभी चलें उसी पुराने मैदान में —
शायद ज़मीन आज भी
हमारे गाड़े हुए कंचों को याद करती हो।

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