स्वामी जी कौन थे कविता | Bachpan ki best kavita बचपन की कविता हिंदी में पूरी

स्वामी जी कौन थे कविता | बचपन की प्रसिद्ध हिंदी कविता पूरी

पढ़ें ‘स्वामी जी कौन थे’ कविता बचपन की यादों के साथ। हिंदी की यह प्रसिद्ध कविता बच्चों के लिए सीख और प्रेरणा से भरी हुई है।

स्वामी जी  Bachpan ki best kavita


गांव की पगडंडी पर,
गेरूआ वस्त्रों में सजी एक परछाईं आती थी,
माथे पर चंदन, हाथ में कमंडल,
और होठों पर राम नाम की माला।

वो घड़ी के टाइम पर फिक्स —
मुर्गे की पहली बांग पर
सुबह चार बजे जग जाते,
गांव के बाहर पुराने कुएं पर जाते,
डोल डालकर स्नान करते,
और फिर सिर के बल आधा घंटा खड़े रहते —
जैसे योग ही उनकी सांस हो।

सात बजते ही उपदेश शुरू,
गांव के लोग इकठ्ठा, बच्चे चुपचाप सुनते,
बीच-बीच में हमें कुश्ती के
दो-चार पेंच भी सिखा जाते।
कहते थे — "गुस्सा मत करना,
गुस्सा आत्मा का ज़हर है।"

गर्मियों में साल में एक बार आते,
पता नहीं किस दूर आश्रम से,
पर आते तो लगता मानो
गांव का हर आंगन पवित्र हो गया हो।

हमेशा खड़ाऊ पहनते थे —
एक बार मैंने पहन ली,
तो डांटते हुए बोले,
"पहले संत बनकर दिखाओ,
तब मिलेगा इसे पहनने का हक।"

लंबा कद, तेज नयन,
अपने लोटे को मिट्टी से खुद चमकाते,
और सादगी को ही अपना आभूषण मानते।

कई बरस से उनकी कोई खबर नहीं,
शायद अब इस दुनिया में न हों,
पर जब भी गांव जाता हूं
और उस सूखे कुएं पर खड़ा होता हूं,
तो पानी की जगह
उनकी मुस्कान और आवाज़
लहर बनकर मन में उतर आती है।




टिप्पणियाँ

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