लाल शहर भाग 2 | हिंदी कविता | LAL SHAHAR KAVITA SHAYRI PADHE EK NEW STYLE ME
लाल शहर भाग 2 कविता – यहाँ सुबह चाय नहीं बल्कि स्ट्रेस का घूंट मिलता है। पढ़िए Rakesh Prajapati की यह गहरी हिंदी कविता जो शहर की थकान और सच्चाई को बयां करती है।
लाल शहर (भाग 2)
यहाँ हर सुबह चाय नहीं,
एक स्ट्रेस का घूंट होती है।
लोग नमस्ते नहीं करते अब,
सीधा "क्या काम है?" पूछते हैं।
बिल्डिंगों की ऊँचाई से
ज़मीन का दर्द दिखता नहीं,
पर हर बालकनी के पीछे
एक थकी हुई आह रहती है।
लाल बसें दौड़ती हैं पटरियों पर,
पर कोई अपनी मंज़िल पर नहीं पहुँचता।
बस चलता है…
जैसे ये शहर, जैसे ये लोग —
रुके बिना, थके बिना, समझे बिना।
यहाँ मंदिर भी लाल,
और बोर्डर पर झंडा भी,
फर्क बस इतना कि
एक में भक्ति है,
दूसरे में बंदूकें।
कभी सोचता हूँ —
क्या ये रंग बदल सकता है?
क्या ये शहर कभी
नीले आसमान सा शांत होगा?
शायद नहीं।
क्योंकि लाल अब सिर्फ़ रंग नहीं रहा,
ये शहर की फितरत बन चुका है।
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