एक कुम्भार की कविता



मैं एक कुम्हार हूं 
मैं एक कुम्हार हूं
मैं सिर्फ मिट्टी नहीं गूंथता,
मैं सपने गढ़ता हूं, आकार देता हूं,
घड़ा बनता है मेरे हाथों से,
पर उसकी थाप में तुम्हारा जीवन बसता है।

मटकी में रखी पानी की ठंडक,
सिर्फ जल नहीं — मेरे श्रम की मिठास है,
शीतल सुराही जब किसी प्यासे को राहत दे,
तो समझो, वहाँ मेरी आत्मा भी बहती है।

मेरे हाथों की लकीरों में,
गांव की खुशबू, माँ की पुकार,
और मेहनत की भाषा छिपी है।
मैं राजा के महल से लेकर
गरीब की झोपड़ी तक पहुंचता हूं,
बिना किसी भेदभाव के।

मैं धैर्य का शिक्षक हूं,
क्योंकि मिट्टी सिखाती है इंतज़ार करना —
तब तक, जब तक वो पक न जाए।
मैं सिखाता हूं —
कि टूटकर भी जुड़ा जा सकता है,
बस थोड़ा पानी, थोड़ा प्यार चाहिए।

हां, मैं एक कुम्हार हूं,
मिट्टी का साथी,
संस्कृति का वाहक,
और परंपरा का निर्माता।

**राकेश प्रजापति**

टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें

लड़की थोड़ा सिंपल है गाल में डिंपल है

फाइटिंग और गाली वाली शायरी

दादा जी की बंदूक कविता

इंडिया के शहरों के नाम का कमाल कविता

ingagement Wali बेस्ट शायरी इन हिंदी,| सैड शायरी बॉयफ्रेंड और गर्लफ्रेंड के लिए”

रूपए पैसे वाली शायरी

स्कूल का बैग, कविता

"रोमांटिक शायरी हिंदी में" तू ही नहीं आईं शायरी

दर्द भरी @शायरी

फटाफट सैड शायरी /FATAFAT SHAYRI PADHE IN HINDI

मां का चूल्हा" @कविता