रूपए पैसे वाली शायरी



मैं ऐसा कैसा हूँ,
इंसान का पैसा हूँ।
जिसने मुझको खुदा बनाया,
मैं उसके दिल में बैठा हूँ।
मैं ऐसा कैसा हूँ,
इंसान का पैसा हूँ।

मंदिर में चढ़ जाता हूँ,
मज़ारों पे लुट जाता हूँ।
मैं बिकता भी हूँ बाज़ारों में,
और रिश्वत बन जाता हूँ।
मैं ऐसा कैसा हूँ,
इंसान का पैसा हूँ।

माँ की दुआओं से बड़ा,
मुझको किसने माना है?
इंसान मुझमें डूब गया,
फिर खुद को बेगाना है।
मैं ऐसा कैसा हूँ,
इंसान का पैसा हूँ।

मैं दिलों को दूर करूँ,
मैं अपनों को पराया कर दूँ।
फिर भी लोग मुझे बचा-बचा कर,
अपने घर में सजाते हैं।
मैं ऐसा कैसा हूँ,
इंसान का पैसा हूँ।

मैं मेटल हूँ, मैं काग़ज़ हूँ,
पर इंसान से ऊँचा ताज हूँ।
इंसान मुझे कमाने में,
खुद को हार कर बैठा है आज।
मैं ऐसा कैसा हूँ,
इंसान का पैसा हूँ।
राकेश प्रजापति 

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