जिंदगी मोबाइल बन गई है । JINDGI MOBILE BAN GAYI HAI LOVE शायरी PADHE
ज़िंदगी मोबाइल बन गई है।
मुझे ऐसा क्यों लगता है कि,
ज़िंदगी मोबाइल बन गई है।
हर सुबह अलार्म सा चुभता है,
हर रात स्क्रीन में खो गई है।
अब चेहरे कम, प्रोफाइल ज़्यादा,
हर लम्हा ऑनलाइन है।
दिल कहता है कुछ और मगर,
सब कुछ टाइपलाइन है...
ज़िंदगी अब वो नहीं रही,
जो हुआ करती थी कभी।
अब तो ये भी बैटरी सी है,
जो ख़ुद से थक गई है अभी।
मुझे ऐसा क्यों लगता है कि,
ज़िंदगी मोबाइल बन गई है...
कॉल में लिपटे रिश्ते सारे,
नेटवर्क से टूटते हैं।
कभी सिग्नल आता है दिल में,
कभी नोटिफ़ में छूटते हैं।
अंदर के सन्नाटे ढकती हैं।
जो बातें दिल से होती थीं,
अब emoji में सिमटती हैं...
वो साथ जो आँखों से मिलता था,
अब टच स्क्रीन में जलता है।
हर एहसास वाइब्रेट करता है,
मगर कोई भी नहीं पलटता है...
मुझे ऐसा क्यों लगता है कि,
ज़िंदगी मोबाइल बन गई है...
राकेश प्रजापति
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