कबूतरी चिड़िया शायरी | धोखा और बेवफ़ाई पर दर्द भरी शायरी
प्यार में ऐसा क्यों हुआ
मैंने जिसको मोहब्बत की कबूतरी समझा,
वो तो मामूली सी चिड़िया निकली,
मैं आसमानों में उड़ाने चला था जिसे,
वो तो छत पे ही फड़फड़ाती निकली।
हर दाना मैंने प्यार से डाला था,
कि कहीं भूखी ना रह जाए,
पर मोहब्बत की कबूतरी नहीं थी जनाब,
वो तो बस उड़ती हुई अफ़वाह निकली।
जिसे सच्चाई का रूप समझा था मैंने,
असल में वो नकली परछाईं निकली,
चेहरे पे मासूमियत का मुखौटा था,
दिल से तो पूरी तरह तन्हाई निकली।
मैंने चाहा था उसे जैसे खुदा को,
पर क़िस्मत की चाल बड़ी गहरी निकली,
जिसे समझा था अपना वफ़ादार हमसफ़र,
आख़िर में वो भी बेवफ़ा निकली।
अब मोहब्बत का नाम सुनकर हँसी आती है,
हर चाहत मेरी दर्द की परछाईं निकली,
दिल ने माँगी थी वफ़ा एक दुआ बनकर,
पर दुआ भी आखिर खामोश निकली।
सपनों का महल रेत सा बिखर गया,
क्योंकि नींव ही झूठ की बुनियाद निकली,
आज समझ आया रिश्तों की हकीकत,
हर सच्चाई भी कभी-कभी गुमराह निकली।
जिसे कबूतरी समझा, वो चिड़िया निकली,
जिसे आसमान कहा, वो छत तक निकली।
हर दाना मोहब्बत से डाला मैंने,
पर वो वफ़ा नहीं, बस अफ़वाह निकली।

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