कांच का चांद - KANCH KA CHAND शायरी पढ़ें एक खास अंदाज में बेहद खूबसूरत चंद लाइन
कांच का चांद
हक़ीक़त का चांद तो
हर शाम छत पर मिल जाता है,
मासूम-सा, ठंडा-सा,
बचपन की कहानियों जैसा।
पर कांच का चांद...
वो छत पर नहीं मिलता,
वो नज़रों में तैरता है,
तेरे और मेरे बीच
किसी ख़्वाब सा झिलमिलाता है
वो टूटी ख़ामोशी में चमकता है,
जैसे छन-छन के कोई बूंद
यादों की छत से गिर रही हो
हर गिरती बूंद — तेरे नाम की हो।
उसमें तेरी हँसी की चमक है,
मेरे ख़तों की नमी है,
उसमें वो पल भी हैं
जब तू रूठी थी और मैं चुप था।
कांच का चांद —
ना छू सकता हूं,
ना पास बुला सकता हूं,
बस रात भर उसे देखता हूं...
जैसे तुझे सोचते हुए जागता हूं।
कभी लगे तो हाथ बढ़ा लेना,
पर याद रखना —
ये चांद शीशे का है,
टूट गया... तो हम भी बिखर जाएंगे।
– राकेश प्रजापति
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