चिल्लम बीड़ी वाली शायरी कविता
चिलम बीड़ी
चिलम नोच नोच के मैं बीड़ी हो गई,
आपको देख देख मैं शर्मीली हो गई।
रंग मेरा सांवरा था पहले कभी,
तेरे इश्क़ में लाल पीली हो गई।
लबों पे रख दी थी मैंने दुआओं की बात,
तेरी मुस्कान देख के ग़ज़ल सी हो गई।
जो दिल था कभी पत्थरों जैसा मेरा,
शीशा से अब मै शीशी हो गई।
तेरे ख्यालों में यूं उलझती गई,
जैसे पतंग कट के अकेली हो गई।
ज़िन्दगी थी कभी बड़ी सख्त सी,
अब तेरे प्यार में थोड़ी सी ढीली हो गई।
तेरे नाम से जो सांसें जुड़ी हैं,
हर धड़कन अब तेरा तराना हो गई।
कभी सोचा न था यूं होगा कभी,
मेरी तन्हाई भी दीवानी हो गई।
तेरा होना है जैसे कोई दुआ,
जो बरसों बाद कबूल हो गई।
हर शाम जब तुझसे बात होती है,
मेरी रात फिर चाँदनी हो गई।
तू जो छू जाए नज़रों से बस,
हर चीज़ मुझे फिर सुहानी हो गई।
तेरे प्यार में डूबी कुछ इस तरह,
के खुद से ही अब अनजानी हो गई।
चिलम नोच नोच के मैं बीड़ी हो गई,
आपको देख देख मैं शर्मीली हो गई।
रंग मेरा सांवरा था पहले पर
तेरे इश्क़ में लाल पीली हो गई।
*राकेश प्रजापति**
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें