सैलरी का इंतज़ार WALI SPECIAL कविता PADHE EK FUNNY STYLE ME
सैलरी का इंतज़ार
हर बार की तरह, इस बार फिर से,
सैलरी का इंतज़ार है...
कलेंडर की तारीख़ें तो बदली हैं,
मगर जेब की हालत वही बेकार है।
फ़ोन की स्क्रीन बार-बार चेक करता हूं,
"क्रेडिटेड" शब्द के लिए दिल तड़पता है,
पेट की मुरादें, उधारी के किस्से,
सब कुछ उसी मैसेज पे टिका रहता है।
बॉस मीटिंग में कहता है — 'हम परिवार हैं',
पर सैलरी आते-आते परिवार छोटा लगने लगता है।
रातों की नींदें, ओवरटाइम की मार,
फिर भी महीने के आखिर में खाली हाथों का उपहार।
हर बार की तरह, इस बार फिर से,
उम्मीद है... कि शायद इस बार जल्दी आए,
सैलरी नहीं, थोड़ा इज़्ज़त ही सही...
कम से कम वक़्त पर खबर तो आए!
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