अरे राजू, अपनी सुराही किधर गई? कविता -दादा जी की यादें । Bachpan ki best kavita
हिंदी कविता बचपन, दादा जी और गांव की यादों को संजोए हुए है। मिट्टी की सुराही का ठंडा पानी और बीते समय की स्मृतियाँ इसमें झलकती हैं।
अरे राजू, अपनी सुराही किधर गई? Bachpan ki best kavita
अरे राजू,
अपनी सुराही किधर गई
जो एक बार दादा जी बैलगाड़ी में रखकर
बाजार से लाए थे?
उस दिन दादी ने जैसे कोई ख़जाना पा लिया हो,
और हम बच्चों की नजरें बस उस सुराही की चमक पर अटक गई थीं।
वो सुराही —
मटमैले रंग की, लेकिन ठंडे पानी से भरी,
जिसमें न बरफ थी, न फ्रिज का कमाल,
फिर भी उसका एक घूंट,
जैसे लू के थपेड़ों में अमृत पिला देता था।
पर फिर…
सालों बीते,
दादा जी का झोंपा खाली हो गया,
और वो सुराही भी —
नीम के पेड़ के नीचे,
मकड़ी के जालों में फंसी,
धूल-मिट्टी से सनी,
चुपचाप एक कोने में जमा सी पड़ी रही।
जैसे कोई विरासत,
जो अब किसी को याद नहीं,
और सच कहूँ तो,
जैसे दादा जी के जाने के बाद
वो भी खुद को अधूरा सा महसूस करती हो।
अब वो सुराही नहीं दिखती,
ना उसकी गर्दन की वो प्यारी दरार,
ना उसके मुंह पर दादी के लगाए काले टीके,
ना ही वो छांव में बैठकर पानी पीने वाला सुकून।
अरे राजू,
अगर कभी मिले वो सुराही —
तो उठा लाना,
उसे धो-पोंछकर फिर से वहीं नीम के नीचे रख देना।
क्योंकि कुछ चीजें…
सिर्फ पानी नहीं देतीं,
वो यादें भी सींचती हैं।
नोट अगर पसंद आए तो comment लिखें और दोस्तों को शेयर करें
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें