गाँव के बचपन की यादें – Bachpan Ki Kavita और गाँव की प्यारी यादें
गाँव की गलियाँ, बचपन की मस्ती और दोस्तों की मासूम यादें इस Bachpan Ki Kavita में जीवंत हैं। पढ़ें और खो जाएँ अपने गाँव के सुनहरे बचपन की यादों में।
कट्टी
अरे राजू, अपनी मिट्टी भरने वाली कट्टी किधर गई — बचपन वाली?
वो जो टूटी-फूटी पर हमारी दुनिया थी,
जिसमें भरके मिट्टी, हम पहाड़ बना लेते थे,
और फिर खुद ही उस पर चढ़कर
राजा बन जाते थे!
याद है, तू हमेशा ज़्यादा मिट्टी भरता था,
और मैं जलता था —
कहता था, “देख लेना, मेरी कट्टी सबसे भारी होगी!”
फिर दोनों मिलके होड़ लगाते थे,
कौन सबसे ऊँची मिट्टी की ढेरी बनाएगा।
वो जो प्लास्टिक की थी,
पर सपनों से भारी,
वो जिसके हैंडल पर तेरा नाम लिखा था,
काले स्केच पेन से —
अब ना वो कट्टी दिखती है,
ना वो बचपन की मिट्टी।
अरे राजू,
अब ना हाथों में मिट्टी लगती है,
ना पैर गंदे होते हैं,
अब तो बस फोन के स्क्रीन पर
"खेल" हो रहे हैं।
राजू, अगर कभी मिले वो पुरानी कट्टी,
तो एक बार फिर भर लें मिट्टी —
कम से कम यादें तो ताज़ा हो जाएँगी।
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