चल पड़े हैं लेकर बंदूक के जैसे मारने । SAD BABY GIRL की अंदर से झकझोर देने वाली कविता पढ़ें हिंदी में
चल पड़े हैं लेकर बंदूक के जैसे मारने” पढ़ें दिल दहला देने वाली कविता
✍️ – राकेश प्रजापति
चल पड़े हैं लेकर बंदूक के जैसे मारने,
जिधर छिपी हों बेटियाँ, खून से हाथ रंगने।
न जाने कैसी ये नफ़रत है मासूम सांसों से,
जिन्होंने अभी तक ठीक से रोना भी नहीं सीखा।
कोई गर्भ में ही छीन लेता है उनका हक़ जीने का,
तो कोई जन्म के बाद कहता है —
"ये तो बोझ है, कैसे पालेंगे इसे?"
क्या बेटियाँ इस दुनिया की हवा नहीं थीं?
क्या वो माँ की ममता की दुआ नहीं थीं?
जो काग़ज़ पर स्कूल का नाम भी न देख सकीं,
और उनके नन्हें हाथों में चूड़ियाँ भी न बंध सकीं।
कोई कहता है — "घर की इज़्ज़त हैं"
फिर उन्हें ही दीवारों में क्यों दफ़न कर दिया जाता है?
कभी छत से गिरा दिया,
कभी कुएँ में बहा दिया,
कभी पेट में ही दम घोंट दिया...
बोलो इंसान हो या दरिंदा?
क्यों नहीं काँपे वो हाथ,
जब पहली बार उसकी धड़कन सुनी थी?
क्या तुमने कभी सोचा —
कि वही बेटी कल तुम्हारी माँ बनती,
तुम्हें थपकी देकर सुलाती,
तुम्हारी आँखों में आँसू देख रो पड़ती?
वो जो रुलाती नहीं, खुद रो लेती है,
वो बेटी है — खुद मिटकर भी
घर को रोशनी दे देती है।
पर तुमने क्या किया?
चल पड़े हो लेकर बंदूक —
उस पर वार करने,
जो खुद ज़िंदगी की सबसे नर्म परछाईं थी।
चल पड़े हैं लेकर बंदूक के जैसे मारने,
जिधर छिपी हों बेटियाँ, खून से हाथ रंगने।
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