चेतक और दादा जी की सवारी_BEST BACHPAN A SCOOTER WALI कविता । Bachpan ki best kavita
🛵 कविता: चेतक और दादा जी की सवारी
Bachpan ki best kavita
गाँव का पहला स्कूटर, दादा जी का मान।
जिस दिन आया चेतक, उमड़ा सारा गॉंव।।
देख-देख सब हैरान, जगमग उसकी शान।
मेला लग जाए सड़क पर, बज उठे गली-गान।।
फूले टायर हँसते रहे, दो बूँदों का तेल।
पूरा शहर घुमा लाए, जैसे पंखों का खेल।।
पीछे नाती खिलखिलाए, आगे दादा वीर।
‘होंsss सावधान बेटा!’ गूँजे गली-नगर-पीर।।
सब्जी का झोला साथ में, डॉक्टर की दवा।
ऑटो, टैक्सी, एम्बुलेंस—चेतक से ही सवा।।
लेदर कवर चमकता था, दादी करती साफ।
हर इतवार की सवारी, बनती गाँव की ताफ।।
अब न वो किक सुनाई दे, न दादा की चाल।
कबाड़ी की दुकान में, करता है टकसाल।।
जिस दिन चेतक आया था, ढोल बजा चौपाल।
बच्चे नाचे खुशी से, गूँजी हर इक ताल।।
छत पे चढ़कर देखने लगे, बूढ़े और जवान।
गाँव का पहला स्कूटर था, सबकी आँखों का मान।।
शादी-ब्याह की शोभा था, बारात का श्रृंगार।
दूल्हा जब चेतक चढ़े, बढ़े दुल्हन का प्यार।।
बरसों तक पहचान बनी, दादा की थी सवारी।
बिन चेतक सूना लगे, जैसे मेले की बारी।।
अब भी दिल ये सोचता, काश वो दिन लौटे।
गाँव की गलियों में फिर, दादा-नाती दौड़े।।
कबाड़ी में खड़ा हुआ, करता है ये आस।
कोई किक मार दे उसे, जी उठे फिर से साँस।।
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